रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद

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... हाँडी में कई बार उबाल आए, कई बार आग बुझी। बार-बार चूल्हा फँकते-फूँकते सूरदास की आंखों से पानी बहने लगता था। आँखें चाहे देख न सकें, पर रो सकती हैं। ...

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